राजस्थान में ग्रामीण विकास
◆ सन 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में राज्य की 75.2% जनसंख्या गांव में निवास करती है।
◆ आजादी के बाद प्रथम पंचवर्षीय योजना में सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा 1959 में विकास में ग्रामीण सहभागिता हेतु पंचायती राज व्यवस्था अपनाई गई।
◆राजस्थान में ग्रामीण विकास हेतु केंद्र व राज्य सरकार द्वारा विविध कार्यक्रम लागू किए गए----
★ मरू विकास कार्यक्रम (DDP)
★ जीवनधारा योजना
★एकीकृत ग्राम विकास कार्यक्रम
★ ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं व बच्चों का विकास कार्यक्रम (DWCRA)
★युवाओं के स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम (TRYSEM)
★ सूखा संभावित कार्यक्रम
★ ग्रामीण बच्चों को शिक्षित करने हेतु आंगनबाड़ी केंद्र
★ देशी गोवंश नस्ल सुधार कार्यक्रम
★ऑपरेशन फ्लड
★ हरित क्रांति
★भेड़ नस्ल सुधार कार्यक्रम
★भामाशाह योजना
★प्रधानमंत्री सड़क योजना
★स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY)
★ स्वजल धारा ग्राम पेयजल योजना
★ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम
★प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना
★ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम
★अन्नपूर्णा योजना
आदि कार्यक्रमों से ग्रामीण राजस्थान में विकास को गति मिली है
◆ वर्तमान में ग्रामीण विकास विभाग का नाम ग्रामीण विकास में पंचायती राज विभाग है
✓ डेयरी उद्योग
■ राजस्थान में डेयरी विकास कार्यक्रम को गति देने के लिए सन 1973 में डेयरी विभाग की स्थापना की गई।
■ आर.सी.डी.एफ.( राजस्थान को-ऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन ) की स्थापना सन 1973 में की गई थी।
■ वित्तीय वर्ष 2012-13 दिसंबर 2012 तक आर.सी.डी.एफ. से संबंध सभी दुग्ध संघों ने प्रतिदिन 18.01 किलो दूध संग्रह किया था।
■ सन 1970 में देश के अन्य राज्यों के साथ राजस्थान में ऑपरेशन फ्लड शुरू किया गया था।
■ राजस्थान सहकारी क्रय विक्रय संघ (राजफैड) द्वारा झोटवाड़ा, जयपुर में पशु आहार फैक्ट्री स्थापित की गई।
■ राजस्थान में सन 1970 में श्वेत क्रांति की शुरुआत हुई।
■ वित्तीय वर्ष 2012-13 दिसंबर 2012 तक आर.सी.डी.एफ. से संबंध सभी दुग्ध संघों ने प्रतिदिन 18.01 किलो दूध संग्रह किया था।
■ सन 1970 में देश के अन्य राज्यों के साथ राजस्थान में ऑपरेशन फ्लड शुरू किया गया था।
■ राजस्थान सहकारी क्रय विक्रय संघ (राजफैड) द्वारा झोटवाड़ा, जयपुर में पशु आहार फैक्ट्री स्थापित की गई।
■ राजस्थान में सन 1970 में श्वेत क्रांति की शुरुआत हुई।
■ नवीनतम 19वीं पशुगणना 15 सितंबर से 15 अक्टूबर 2012 तक आयोजित की गई, वर्ष 2012 की गणना के अनुसार राज्य में कुल पशुधन 577.32 लाख था।
■ राजस्थान राज्य में सर्वाधिक गोवंश क्रमशः उदयपुर, चित्तौड़गढ़ में तथा न्यूनतम धौलपुर में है।
■ भारत की समस्त गायों का 8% भाग राजस्थान में पाया जाता है।
■ राजस्थान में गोवंश की प्रमुख नस्लों का क्षेत्रीय वितरण निम्न प्रकार है----
★ गीर- इस नस्ल की गायेंं अजमेर, भीलवाड़ा, पाली व चित्तौड़गढ़ जिलों में पाई जाती है इसे गुजरात में गिर व राजस्थान में रैंंडा व अजमेरी के नाम से जाना जाता है। भारतीय नस्ल की यह गाय दूध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
★ थारपारकर- इस नस्ल की गायों का मूल स्थान जैसलमेर का मालाणी क्षेत्र है पूर्णतया शुष्क परिस्थितियों में भी यह उचित मात्रा में दूध देती है जैसलमेर बाड़मेर जोधपुर बीकानेर व जालौर में यह नस्ल अधिक पाई जाती है।
★ नागौरी- इस नस्ल की गायों का मूल स्थान नागौर जिले का सुहालक प्रदेश नागोरी बेल दौड़ने में तेज मजबूत व भारवाहक होते हैं। इस नस्ल की गायें नागौर जोधपुर के उतरी- पूर्वी भाग में नोखा में प्रमुखता से पाई जाती है।
★ राठी- यह लाल सिंधी वैसा ही वालों की मिश्रित नस्ल है यह दूध देने में अग्रणी होने के कारण इसे राजस्थान की कामधेनु कहा जाता है यह नस्ल बीकानेर श्रीगंगानगर जैसलमेर में चूरू के कुछ भागों में पाली जाती है
★ कांकरेज- इन गायों का मूल स्थान गुजरात का कच्छ का रन है। यह भार वाहन व दुग्ध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है यह बाड़मेर सांचौर व नेहड़ क्षेत्र व जोधपुर के कुछ क्षेत्रों में पाली जाती है।
★ हरियाणवी- यह भी भारवाहन व दुग्ध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है यह गाय सीकर झुंझुनू श्री गंगानगर हनुमानगढ़ अलवर भरतपुर जिलों में पाई जाती है।
★ मालवी इस नस्ल का मूल स्थान मध्य प्रदेश का मालवा क्षेत्र है यह मुख्यतः भारी वही नस्ल है राजस्थान में झालावाड़ बारा कोटा व चितौड़गढ़ इनका प्रमुख शास्त्र है।
★ सांचौर- जालौर जिले के सांचौर सिरोही एवं उदयपुर जिलों में पाया जाने वाला गोवंश संख्या में अधिक किंतु दुग्ध उत्पादन में सामान्य श्रेणी का है।
★ मेवाती- यह नस्ल हल जोतने वे बोझा ढोने हेतु उपयुक्त है यह अलवर और भरतपुर जिलों में अधिक पाई जाती है।
★ विदेशी नस्ल वर्तमान में राजस्थान में अधिक दूध देने वाली विदेशी नस्ल की जर्सी होलिस्टन व रेड रेन गायेंं भी पाली जाने लगी है।
■ राजस्थान राज्य में सर्वाधिक गोवंश क्रमशः उदयपुर, चित्तौड़गढ़ में तथा न्यूनतम धौलपुर में है।
■ भारत की समस्त गायों का 8% भाग राजस्थान में पाया जाता है।
■ राजस्थान में गोवंश की प्रमुख नस्लों का क्षेत्रीय वितरण निम्न प्रकार है----
★ गीर- इस नस्ल की गायेंं अजमेर, भीलवाड़ा, पाली व चित्तौड़गढ़ जिलों में पाई जाती है इसे गुजरात में गिर व राजस्थान में रैंंडा व अजमेरी के नाम से जाना जाता है। भारतीय नस्ल की यह गाय दूध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
★ थारपारकर- इस नस्ल की गायों का मूल स्थान जैसलमेर का मालाणी क्षेत्र है पूर्णतया शुष्क परिस्थितियों में भी यह उचित मात्रा में दूध देती है जैसलमेर बाड़मेर जोधपुर बीकानेर व जालौर में यह नस्ल अधिक पाई जाती है।
★ नागौरी- इस नस्ल की गायों का मूल स्थान नागौर जिले का सुहालक प्रदेश नागोरी बेल दौड़ने में तेज मजबूत व भारवाहक होते हैं। इस नस्ल की गायें नागौर जोधपुर के उतरी- पूर्वी भाग में नोखा में प्रमुखता से पाई जाती है।
★ राठी- यह लाल सिंधी वैसा ही वालों की मिश्रित नस्ल है यह दूध देने में अग्रणी होने के कारण इसे राजस्थान की कामधेनु कहा जाता है यह नस्ल बीकानेर श्रीगंगानगर जैसलमेर में चूरू के कुछ भागों में पाली जाती है
★ कांकरेज- इन गायों का मूल स्थान गुजरात का कच्छ का रन है। यह भार वाहन व दुग्ध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है यह बाड़मेर सांचौर व नेहड़ क्षेत्र व जोधपुर के कुछ क्षेत्रों में पाली जाती है।
★ हरियाणवी- यह भी भारवाहन व दुग्ध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है यह गाय सीकर झुंझुनू श्री गंगानगर हनुमानगढ़ अलवर भरतपुर जिलों में पाई जाती है।
★ मालवी इस नस्ल का मूल स्थान मध्य प्रदेश का मालवा क्षेत्र है यह मुख्यतः भारी वही नस्ल है राजस्थान में झालावाड़ बारा कोटा व चितौड़गढ़ इनका प्रमुख शास्त्र है।
★ सांचौर- जालौर जिले के सांचौर सिरोही एवं उदयपुर जिलों में पाया जाने वाला गोवंश संख्या में अधिक किंतु दुग्ध उत्पादन में सामान्य श्रेणी का है।
★ मेवाती- यह नस्ल हल जोतने वे बोझा ढोने हेतु उपयुक्त है यह अलवर और भरतपुर जिलों में अधिक पाई जाती है।
★ विदेशी नस्ल वर्तमान में राजस्थान में अधिक दूध देने वाली विदेशी नस्ल की जर्सी होलिस्टन व रेड रेन गायेंं भी पाली जाने लगी है।
राजस्थान में ग्रामीण विकास, डेयरी उद्योग, गौ -पालन
Reviewed by Dharmaram
on
November 16, 2018
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